तू कहता था कि है मेरा पर तू हमारा न हुआ
क्या करोगे ऐसे स्वार्थ भरे जीवन का सनम
मुझसे वफा कर न सके किसी और से वफा न निभाओ
जिस्मों जा को तलब है तुम्हारी मरने के हद तक
यूं तलब का दरिया सनम दूरियों से न सुखाओ
कई सैलाब उठते है जिगर में तूफान की तरह
बवंडर इश्क का है "अनीष" इसे हवा मत बनाओ
जो मेरे न हो सके किसी और के क्या होगे तुम
या खुदा ! हमें उनके लिए और न तड़पाओ ।।