शनिवार, 21 दिसंबर 2024

तू सोई है देर रात तूने,मैसेज भी मेरा पढ़ा होगा,

तू सोई है देर रात,
तूने मैसेज भी मेरा पढ़ा होगा, 
रिप्लाई नहीं किया तूने,
तेरे दिल ने जरुर तुझसे  कुछ कहा होगा,
मैं तेरे लिए खास नहीं, मैं जानता हूं 
तेरी यादो में मेरे सिवा कोई तो रहा होगा।

अनीष 
21/12/2024

गुरुवार, 10 अक्टूबर 2024

यु जुल्फ़े न सवारां करो आईने में देख कर ll Poetry by Anish ll

रविवार, 6 अक्टूबर 2024

चल कहीं दूर चलते है ।। Poetry by Anish ।।

एक तलाश है तुम्हारी जुल्फो की छांव की 
तुम्हारी बाहों में उस शांत से गाँव की 
या उन भीड़ भाड़ से भरी शहरो की
 जहां कोई किसी को जानता न हो 
औरअपने उस  छोटे से घर में हो सिर्फ मैं और तुम
 एक तलाश तो रहती है सुकून की
 और एक तलाश है अपने मन पसंद शख्स की 
संग जिसके हम बिता सके सुकु के दो चार पल 
और प्यार के वो लम्हे जो मिलते है बड़ी मुद्दतो के बाद
शायद ही किसी ख़ुशनसीब को 
मैं उसी पल के चाह में तुम्हारे पास आया हूं 
मैं बहुत देर हूं फिर भी तुम्हारे पास आया हू 
मैं आया हूं सिर्फ तुम्हारे लिए 
ताकि दे सकूं तुम्हें वो पल जो तुम चाहती हो ,
तुम्हारी शर्तो पर 
फैसला तुम्हारा होगा संग मेरे चलना है या अकेले 
इस छोटे से शहर में 
 या कहीं दूर किसी ऐसी जगह  
जहाँ हमें कोई  जानता न हो 
हमें कोई पहचानता न हो 
जहां जी सकें हम अपनी ख्वाहिशों को
 और मर सके एक दूसरे की बांहो में ।
अनीष 
6/10/2024 रात 12.34 बजे

शनिवार, 14 सितंबर 2024

एक कोरी कल्पना ।। Poetry by ANISH ।।

मैंने अपने इस जीवन को स्वीकार कर लिया है
जिसमें तुम मेरे लिए मात्र एक कोरी काल्पनिक हो 
मैंने बहुत चाहा तुम्हें पर कभी कह नहीं पाया 
इस डर से कि हमारे बीच वो भी रिश्ता खत्म न हो जाए 
जो कई बरसों से है बना हुआ 
पर मैंने तुम्हें कई बार इशारे दिए
 कि तुम समझ जाओ और शायद तुम समझ भी गई
 तभी तो तुमने मुझे खुद से जुदा कर दिया 
क्यूकिं शायद तुम्हें मैं पसंद नहीं आया हूं
 तुम्हें कोई और पसंद है , जिसके जैसा मैं नहीं हूं 
इसलिए मैंने भी अपनी नियति को स्वीकार कर लिया है 
पर सच कहूं तो चाहता हूं तुम्हारा साथ उमर भर के लिए 
जो नामुमकिन भी नहीं है तुम्हारे लिए
 पर मैं तुम्हारे जैसा श्रेष्ठ नहीं हूं 
और शायद इसिलिये मैं तुम्हारा भी नहीं हूं
 और तुम मेरी हो भी तो अधूरी मुहब्बत 
और सिर्फ एक कोरी कल्पना  ।।
अनीष
13/9/24

हाए । इस अदा में भी तुम बड़े मासूम से लगते हो ।। Anish Ki Kavita ।।

आओ हुजूर दिल की बात तो कह दो
यू खामोश लबो से इजहार न करो 
हम भी टूट जाना चाहते हैं तुम्हारी बाहों में 
यू बेकरार करके हमें प्यार ना करो 
तुम्हारी आंखे बेहया है 
मुझे गंदी निगाहों से घूरती है 
छू कर एक बार मुझे जिंदा कर दो 
ना जाने खामोशी में ये क्या ढूंढती है
और सुनो मैं लड़की हूं ,इजहार नहीं करूंगी
 बिना तुम्हारे पहल के,  तुमसे प्यार नहीं करूंगी 
पर चाहूंगी मैं भी वैसे ही जैसे तुम चाहते हो
 और तुम जो ये इन्टरोवर्ट बने रहते हो 
लबों से कुछ नहीं कहते हो 
हाए इस अदा में भी तुम बड़े मासूम से लगते हो ।।
अनीष
13/9/2024

ये बिस्तर की सिलवटे मुझे तुम्हारी याद दिलाती है।।ANISH KI KAVITA।।

आज जब बिस्तर पर गया 
तो तुम्हारी बाहों की याद आई 
कि कैसे जब मैं थक कर चूर हो जाता था  कामों से 
तब तुम मुझे अपने आगोश में भर लेती थी 
मुझे सीने से लगा लेती थी 
और तुम्हारे उस प्यार भरे  स्पर्श से मैं जी उठाता था
 तुम्हारी सांसों की गर्मी से
 मुझे तुम्हारी तड़प का एहसास होता था 
और तुम्हारे जिस्म की वो खुशबू 
मुझे मदहोश कर देती थी
आज जब एक पल के लिए
 तुम मुझसे दूर गई हो 
तो मुझे तुम्हारी याद आती है 
हर वक्त, हर लम्हा मैं तुम्हें महसुस करता हूं 
और ये बिस्तर की सिलवटे मुझे तुम्हारी याद दिलाती है।

अनीष 
13/9/24.

शनिवार, 31 अगस्त 2024

सोचता हूँ तुझसे इज़हार कर दूं मैं

सोचता हूँ तुझसे इज़हार कर दूं मैं
 तेरे दिल को भी बेकरार कर दूं मैं
पर डरता हूं तेरे इनकार करने से
 तुझे खो कर तुझसे बेइंतहा प्यार करने से 
टूट कर बिखर जाउंगा मैं चंद लम्हातो में 
दिल भी दुखेगा मेरा फिर छोटी छोटी बातों पे
 तेरी बेरूखी भी समझ आती है मुझे
 तेरे दिल की दबी चाहत भी तड़पाती है मुझे 
तुझे भी मुझसे प्यार तो है
 तेरा भी दिल बेकरार तो है
 पर मैं जानता हूं तू इसे नहीं स्वीकार करेगी 
और तुझे समझा पाना भी मेरे बस की बात नहीं 
जोर जबरदस्ती करूं ऐसे मेरे हालात नहीं
 ये अजीब कसमकस का दौर है 
तेरे लिए भी मेरे लिये भी
पर सोचना तू कभी खुद के बारे में भी 
कि क्या तेरा निर्णय सही है मुझसे दूर रहने का
 सिर्फ ये सोच कर कि समाज क्या कहेगा 
और तेरे इस दुख का साथी कौन समाज है 
कोई तेरा अपना नहीं है तेरे दुखो में 
और वो तू जो एक अंजान बंधन में खुद को महसूस करती है 
सब तेरे मन का बंधन है
 तू उससे बाहर निकल कर देख 
और सोच की पिछली गलतियों को कैसे सुधारा जाए 
और अपनी आने वाली जिंदगी को कैसे संवारा  जाए
बरसो बीत जाते है पत्थर दिल नहीं बनते 
और आज जो तुमने ये मौका ठुकरा दिया 
यकिन मानो एक दिन तुम्हें एहसास  होगा
 कि तुम गलत थी
और तब तुम्हारे पास न वक्त होगा न मैं
पर सच तो ये है कि मुझे तुमसे बेइंतहा इश्क है 
जिसे मैं बयां कर तो दूं पर अल्फ़ाज़ कम पर जायेंगे
 तुमसे बिछड़ कर हम जियेंगे तो
 पर अंदर ही अंदर हम मर जाएंगे ।।
 अनीष 
31/8/24
7:45 pm

गुरुवार, 29 अगस्त 2024

अजीब शख्स है वो मुस्कुराता भी नहीं ।। Poetry by Anish ।।

 अजीब शख्स है वो मुस्कुराता भी नहीं
 दिल में क्या है यह बताता भी नहीं
 हम चाहते हैं उसे कितना यह कहे  तो कहे कैसे 
और हमे छिपाना आता भी नहीं 
ये इश्क भी अजीब है
वो तड़पता तो है 
मगर मुझे अपने पास बुलाता भी नहीं
 इश्क की बस्तियों में बरबादियां है छिपी 
इसी डर से मैं उधर जाता भी नहीं ।।

वो बदल गई है ।। Poetry by Anish ।।

वो बदल गई है
न जाने क्यूं
पहले सी बातें नहीं करती है
अब शायद हो गया हूं 
मैं भी साधारण उसके लिए 
या फिर उसका जी भर गया है मुझसे 
पहले तड़प थी उसमें 
मुझे पाने की
 पर अब वो तड़प
 उसकी आंखों में दिखती नहीं
 पहले हर पल चाहती  थी वो मेरा साथ
यहां तक की छोटी-छोटी जगहो पर 
बिना संग मेरे उससे जाया ना जाता था
 पर शायद अब उसे आदत हो गई है
 मेरे बिना जीने की
 मुझमें कुछ नहीं बदला मैं आज भी वही हूं 
उसकी इन हरकतों से दिल में चुभन सी होती है 
मर्माहत हो उठता हूं मैं
 पर उसे एहसास भी नहीं होता
 या होता भी है तो
 वो जानबूझकर अनजान बन जाती है
 रूह की गहराइयों तक सहम गया हूं मैं 
और उस दर्द को बयां करूं भी तो कैसे
 जो इस एहसास के साथ आता है 
कि वो मुझसे अब दूर जा रही है 
कभी-कभी लगता है जैसे
 मेरे लिए उसका प्यार बस एक छलावा है
 नहीं तो उसकी आंखों की उदासियां भी पढ़ लेता हूं मैं 
और मैं रोता हूं तो वो देखती नहीं
 मैं उसे समझाऊं भी तो क्यों कर समझाऊं 
जब उसे किसी बात की समझ ही नहीं 
मैं कब तक रोक पाऊंगा उसे उसकी मर्जी के बगैर
 ये जानते हुए भी कि मैं सिर्फ उसी का हूं
 गर वो जता भी नहीं सकते
 तो मैं ही क्यों हर बार उनसे कहूं 
मैं ही क्यों हर बार बेबस बनूं
 कभी तो सीने से लगाकर वो भी कहे 
मैं सिर्फ तुम्हारी हूं और तुम सिर्फ मेरे
 हर रात गुजर जाती है तड़प तड़प कर
 ना कोई कॉल , ना कोई मैसेज ही आता है 
मैं ही गलत रास्ते पर हूं शायद
 मुझे भी बदल जाना चाहिए 
उनकी ही तरह 
और हो जाना चाहिए धीरे-धीरे दूर
 उनसे , उनकी यादों से
 पर एक बात मैं भी कह देता हूं तुम्हें 
यकीन मानो मुझसे बेहतर कभी नहीं मिलेगा तुम्हे
 ना वफादारी में, ना ईमानदारी में 
ना दिल का सच्चा इंसान 
मुझसे ज्यादा दुनिया भले ही देखी होगी तुमने
 पर इंसानों को पहचानना तुमसे ज्यादा जानता हूं मैं
सच कहता हूं
 तुम्हारी इस बेरुखी से तंग आकर 
तुम्हें छोड़ जाऊंगा मैं 
और यकीन मानो
 फिर कभी नहीं लौट कर आऊंगा मैं ।।

अनीष 
28/8/24

सोमवार, 26 अगस्त 2024

कभी बाप, कभी बेटा , कभी महबूबा हो जाता हूं

कभी बाप, कभी बेटा , कभी महबूबा हो जाता हूं
मैं वो शख्स हूं जो हर रोज नया हो जाता हूं
तुझे कहूं भी तो क्या कहूं सनम अपने लिए
मैं बिना कहे भी बयां हो जाता हूं ।।

अनीष ।। 

शनिवार, 10 अगस्त 2024

मुझे तुमसे प्यार हो गया है ।। Poem by Anish ।।

मुझे तुमसे प्यार हो गया है
 पर मैं तुझसे कहूं कैसे
 तेरे बिना जीना मुश्किल हो रहा है 
बता तेरे बगैर रहूं कैसे

 क्या तू भी यही चाहती है
 जो मैं चाहता हूं 
कुछ इशारा तो कर
 दिल मेरा तुझे चाहता है
 कुछ सहारा तो कर

 ख्वाबों में तेरी जुल्फों को संवारता हूं मैं 
करवटों में रातों को गुजरता हूं मैं 
तेरे ख्याल से ही पागल हो जाता हूं 
 सोच बिना तेरे कैसे जिंदगी गुजारता हूं मैं

 तू चाहती है या नहीं मुझे कह भी दे
 मेरे दिल की तड़प  तू सह भी ले 
सितमगर सितम की भी हद होती है 
 मुझसे जुदा होकर तू भी कभी रह भी ले

  देख मुझसे न कही जाएगी दिल की बात
 कुछ मजबूरीयां है मेरे भी साथ
 पर तेरे होठों से सुनना चाहता हूं मैं 
ख्वाब संग तेरे बुनना चाहता हूं मैं

 तू इजहार कर , मैं स्वीकार कर लूंगा
 मेरी जान मैं तुझे बेइंतहा प्यार कर लूंगा ।।

अनीष । 
9/8/24 ,रात्रि.

मैं तुम्हारा हाथ थामूं तो छुड़ाना मत ।। Poem by Anish ।।

मैं तुम्हारा हाथ थामूं तो छुड़ाना मत 
मेरी जान तुम मुझसे शरमाना मत 

जब इश्क है तो है शरमो हया कैसी 
हम तुम्हारे हैं तुम हमारी हो फिर ख़ता कैसी

 आओ कि सीने से लगा भी लो
 जब चाहतें हैं तो फिर गिला कैसी 

सुनो मैं तुमसे जबरदस्ती प्यार करूंगा 
 तुम ना भी करो फिर भी मैं इज़हार करुंगा

 तुम इंकार कर देना मुझे नहीं परवाह
 मैं तुमसे प्यार करता हूं, तुम्ही से प्यार करूंगा ।।

अनीष 
9/8/24 रात्रि

रविवार, 4 अगस्त 2024

तेरे संग सारी उम्र बिताना चाहता हूं मैं।

तेरी मजबूरियों का फ़ायदा उठाना चाहता हूँ मैं
आ तुझे गले लगाना चाहता हूं मैं 
वो जो राख से बारूद बन गई है 
उसे ही आजमाना चाहता हूं मैं 
कभी कभी मैं चाहता हूं कि तुझसे प्यार करूं और तुझे पता भी न चले
ऐसी मुहब्बत निभाना चाहता हूँ मैं 
हल्की हल्की बरसात में अपनी बाइक के पीछे तुझे बिठा कर 
बहुत दूर तलक जाना चाहता हूं मैं 
मैं चाहता हूँ कि हमें कोई न देखे जब हम साथ हो 
और चुपके से तुझे भगा कर ले जाना चाहता हूँ मैं
कभी कभी सोचता हूं चिल्ला कर कह दूं इस जमाने से कि तू सिर्फ मेरी हैं
और तेरे संग सारी उम्र बिताना चाहता हूं मैं।

अनीष 


मायूसी

मैं बहुत निराशावादी व्यक्ति हूं
तुम नहीं जानती शायद 
बहुत जल्दी निराश हो जाता हूँ मैं 
तुम्हारी हर उन छोटी हरकतों से
 जो मुझे एहसास  कराती है कि तुम मेरी नहीं हो 
तुम नहीं चाहती हो मेरा साथ 
न ही तुम्हें मुझसे प्यार है
कभी कभी जब मुझे महसूस होता है कि
तुम्हारे लिए तुमसे महत्वपूर्ण कोई नहीं 
मैं भी  नहीं 
तब दिल मायूस हो जाता है 
क्यूंकि मुझे स्पेशल रहने की आदत है
और वो इम्पोर्टेंस जब तुम मुझे नहीं देती हो
 तब मैं निराश हो जाता हूं 
 तुम्हें  फर्क ही नहीं पड़ता मेरे होने न होने से
 तब फिर ऐसे संबधो का क्या करेंगे हम
 कहां तक जाएगी हमारी ये मायूस जिंदगी
 जबकि मैं चाहता हूँ जीवन भर का तुम्हारा साथ। 

अनीष 
4/8/24

रविवार, 28 जुलाई 2024

कब तक मैं ही कोशिशें करूं तुम्हें मनाने की

कब तक मैं ही कोशिशें करूं तुम्हें मनाने की 
कभी तो तुम भी मान जाया करो 

बड़ी हसरत है दिल को कि तुम्हें छू कर देखूं 
कभी तो अपने करीब बुलाया करो 

इस जिंदगी का क्या भरोसा कब है कब नहीं
कभी तो सीने से लगाया करो

बड़ी बेचैनी से बीतती है सारी रात 
कभी तो ख्वाबों में आ जाया करो 

सितम उतना ही करो जितना हमसे सहा जाए
यूं हमें बेचैन करके न जाया करो ।।

अनीष.   28/7/24


यूं पर्दे में ना आया करो

मुझे नहीं पसंद हमारे बीच में दीवारें 
यूं पर्दे में ना आया करो

 बहुत नाजुक है दिल मेरा सनम
 इसे बेवजह न तड़पाया करो

हुई मुद्दत हमें चांद को देखें
चांदनी रात सी कभी छलक जाया करो

 कि अब मर जाएंगे हम जुदा हुए तो 
कभी तो जीने की वजह बन जाया करो।

अनीष .    27/7/24

शुक्रवार, 19 जुलाई 2024

मैं तुझे अब भूलाना चाहता हूं ।

उस दिल उस दर्द से निकल जाना चाहता हूं
मैं तुझे अब भूलाना चाहता हूं ।
बरसों जो मुझे समझ नहीं पाई 
उसी से अब दूर जाना चाहता हूं ।
मैंने सोचा था मैं साथ रहूंगा तेरे उम्र भर
 पर मैं अब कहीं और जाना चाहता हूं ।
मेरी मजबूरी है सनम कि मैं कुछ कह नहीं सकता
 तुझे अपने दिल का हर हाल बताना चाहता हूं ।
तुझे भी मतलब है सिर्फ खुद से ही , मुझसे क्या मतलब
 अब वही मतलब छुपाना चाहता हूं ।
बहुत थक गया हूं मैं तुझे मनाते मनाते 
अब सुकून की नींद पाना चाहता हूं ।
इस जिस्मो जां को तलब थी तेरी
 अब वही तलब मिटाना चाहता हूं ।
रूह से जिगर तक झुलस गया है मेरा 
अब तन्हाई में वो जख्म मिटाना चाहता हूं ।
बड़ी शिद्दत से चाहा था तुझे
 पर अब मैं तुझे दिखाना चाहता हूं 
तू मुझे चाह ना सकी 
अब कभी भी मैं तेरे पास लौट कर नहीं आना चाहता हूं।।
अनीष
19/7/24
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मंगलवार, 16 जुलाई 2024

Hindi kavita || तेरे पलकों से गिरते आसुओ को थाम के देखूँ ||



तेरे पलकों से गिरते आसुओ को थाम के देखूँ 

तेरे पलकों से गिरते आसुओ को थाम के देखूँ 
अगर ये शाम है तो मैँ तुझे हर शाम को देखूँ 


न देखूँ तुझको देखने के बाद कोई भी मंजर 
जो देखूँ  खुद को सरेआम तो  नीलाम मैं देखूँ 


खरीद ले तू मुझे ऐ मेरे हमदर्द , हमराही 
मै जिंदगी की शाम देखूँ  तुझे थाम के देखूँ   



"अनीष"  यूँ ही नहीं जिंदगी अपनी हुई जन्नत 
जो देखता हूँ तुझे खुद को लगे राम मैं देखूँ   ।। 


शायर :- अनीष राज  . 


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रविवार, 14 जुलाई 2024

तुम सोचती होगी कि मैं तुम्हें कॉल क्यों नहीं करता ?

तुम सोचती होगी कि मैं तुम्हें कॉल क्यों नहीं करता 
सच कहूं तो मुझे तुम्हारे लिए तड़पना अच्छा लगता है
 और मैं चाहता हूं कि तुम उस तड़प को महसूस करो जो प्यार में होता है 
मन तो बहुत करता है तुमसे बातें करता रहूं 
तुम्हें सीने से लगा कर रखूं 
तुमपर हर पल अपना प्यार लुटाऊ
 पर मैं नहीं जानता कि तुम्हारे दिल में क्या है
आंखें तुम्हारी कुछ कहती है 
कभी इकरार करती है
 कभी इनकार करती है
 ऐसा लगता है जैसे तू मुझे प्यार करती है
 पर कभी-कभी तुम इतनी बेरुखी से पेश आती हो 
मुझसे नज़रे भी नहीं मिलती हो
 तब लगता है जैसे दिल में कुछ टूट सा गया है 
तड़प कर रह जाता हूं तुम्हारी इन हरकतो से
 पर तुमसे पूछूं भी तो कैसे 
डर है कहीं खो ना दूं , वो भी रिश्ता जो तुमसे है जुड़ा है 
ऐ मेरे महबूब मेरे दिल में है बहुत अरमां 
 सोचता हूं तुम्हारी नाज़ुक गुलाब की पंखुड़ियां सी होठों को 
छू लूं अपने होठों से 
और उस स्पर्श से तुम विमुग्ध हो जाओ
 और खो जाओ मुझमें
 और उस असीम प्यार को महसूस करो
 जो हर पल तुम्हारे लिए मैं महसूस करता हूं
 ऐ मेरे  सनम मैं तुमसे बड़ी मुश्किल से दूर रहता हूं
 कभी-कभी जब हद से ज्यादा तड़प उठता हूं
 तो दिल करता है तुम्हारे सीने  में मुंह को छुपा लूं 
और घंटो लिपटा रहूं तुमसे 
उस लता की तरह जो लिपट जाती है किसी डाल से 
तुम्हारी उन आंखों में मुझे मेरे लिए प्यार दिखता है 
वो तड़प दिखती है , जिसे मैं चाह कर भी बयान नहीं कर सकता
 गुजरता हूं हर शाम  रात तुम्हारी गलियों से 
बस एक झलक तुम्हारी देखने के लिए कई मिलो का सफर तय करता हूं 
तुम तो आती नहीं नजर 
तुम्हारी खिड़की दरवाजों को देखकर सुकून मिल जाता है - कि तुम ठीक हो 
वो रौशनी  जो तुम्हारे कमरे के झरोखों से आती है
 जब मेरे बदन को छूती है, तो लगता है जैसे तुमने मुझे छू लिया है 
और कभी जो तुम दिख जाती हो मुझे वहां
 बड़ी मासूम लगती हो तुम उन घर के कपड़ों में 
  एक अल्हड़ बच्ची सी खिलखिलाती 
 और यहां जहां  हम काम करते हैं
 कितनी अलग लगती हो तुम 
उन ऑफिस के छोटे से कैबिनेट में 
तुम्हारी परफ्यूम की महक जब मुझमें समाती है 
रोम रोम सिहर जाता है मेरा
 एक अजीब सा एहसास होता है 
जिसे शब्दों में बयां नहीं कर सकता मैं 
और जब मैं तुम्हारे चेहरे को बेशर्मी  से देखता हूं
 तो दिल करता है सच में बेशर्म बन जाऊं , सबके सामने वही 
और तुम्हें  कस के अपने सीने से चिपका  लूं 
और उन गोरे-गोरे गालों को जी भर के चूमूं 
सच कहूं तो तुमसे लड़ना चाहता हूं , झगड़ना चाहता हूं, 
 तुम  पर अपना हक जताना चाहता हूं 
और तुम्हारे साथ दुनिया के सामने बेशर्म बन जाना चाहता हूं
  चाहता हूं कि तुम्हारे मांग में सूरज की लालिमा  भर दूं
और अमावस की काली रातों सी तुम्हारी आंखों में खो जाऊं कहीं 
और उस चांदनी रात में दो मंजिलें बालकनी में 
 तुम्हारे पीछे तुमसे लिपट कर ,तुम्हारी दोनों हाथों  को थामे
 तुम्हारी गालों से अपने गालों को सटा कर
 घंटो उस चांद को अपने चांद के साथ निहारूं 
उन सुंदर दृश्यों को देखूं जो पेड़ों से  ढ़की पहाड़ियों की है
 उन नदियों की है , उन बस्तियों की है 
उस कल्पना से परे दुनिया में  मैं तुम्हारे साथ जाना चाहता हूं
 तुम्हें अपने सीने से लगाकर सो जाना चाहता हूं
 मेरी जान तुझसे बहुत प्यार है मुझे 
और तुझे मैं पाना चाहता हूं ।।

अनीष .  
July 2024

शनिवार, 22 जून 2024

यूं बेरूखी से तेरा मुकर जाना

यूं बेरुखी से तेरा मुकर जाना मुझे गंवारा ना हुआ
तू कहता था कि है मेरा पर तू हमारा न हुआ 

क्या करोगे ऐसे स्वार्थ भरे जीवन का सनम 
मुझसे वफा कर न सके किसी और से वफा न निभाओ

जिस्मों जा को तलब है तुम्हारी मरने के हद तक 
यूं तलब का दरिया सनम दूरियों से न सुखाओ

कई सैलाब उठते है जिगर में तूफान की तरह 
बवंडर इश्क का है "अनीष" इसे हवा मत बनाओ

जो मेरे न हो सके किसी और के क्या होगे तुम 
या खुदा ! हमें उनके लिए और न तड़पाओ ।।

चांद की कश्ती में

चांद की कश्ती में इक जहां है हमारा 
जहां न तुम हो हमारे , न कोई है हमारा 

वो चांद भी मेरे दु:ख से सिमट सा गया है 
यहां कौन है हमारा और कौन है तुम्हारा 

मैं चाहता हूं कि तुम्हें उस दु:ख से निकाल लूं 
और ले चलूं वहां जहां तुम रहो हमारी और मैं रहूं तुम्हारा ।।

Anish ; 26/6/2024. 9:00 p.m  

शनिवार, 16 मार्च 2024

Hindi kavita || बेवफाई इससे बिगड़ी और क्या होगी ||


बेवफाई इससे बिगड़ी और क्या होगी 


HINDI KAVITA KILLER ANISH



बेवफाई इससे बिगड़ी  और क्या  होगी 
तुमने वफ़ा की आड़ में दिल जलाया है 


जा तू भी बदनीब हो जा बेवा की तरह 
ये सजा जो तुझको दी है वो खुद को सुनाया है 


ए मौला मुझको तू दोजख की  आग में जला 
इक बेवफा से मैंने अपना दिल लगाया है 


यूँ जिन्दा रहना मरके भी रहने से है बदतर 
तुझसे जो दिल लगाया तो खुद को गंवाया  है 


तुझसी महबूबा मिले न दुश्मन  को भी कभी 
ए "अनीष" तूने क्यू ये अपना दिल लगाया है  । । 


कवि :- अनीष राज

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हिंदी कविता || सर्द राहों पे याद ओढ़े चला जाता हूं || Hindi kavita ||


 सर्द  राहों पे याद ओढ़े चला जाता हूं


 सर्द  राहों पे याद ओढ़े चला जाता हूं
 उसकी आंखों में डूब डूब के उतराता हूं 


खुली किताब सी जो बरसों मेरे साथ रही
उसी से आजतलक ना जाने क्यों घबराता हूं 


बड़ी मायूस थी वो उसके बिछड़ने के वक्त से 
जिसे मैं दिल की धड़कनों में बसाता हूं 


यही बात उसकी मुझको तोड़ देती हैं 
अजीब बात है मैं उससे दिल लगाता हूं 


वो तो पाक है हर शै में इबादत की तरह 
वो मुस्कुराती है तो मैं भी मुस्कुराता हूं


तमाम उम्र जिसकी याद में गुजरी , ऐ "अनीष" 
आज सीने से लगा उसको सुकूं पाता हूं ||





कवि :- अनीष राज





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Hindi kavita || child marriage || balika wadhu || बालिका वधू ।।

 Hindi kavita || child marriage|| social evil || balika wadhu || बालिका वधू ।। poetry ||


माँग में जब सिंदूर रोती है

तब बालिका वधू होती है

आँखो से आँसू झड़ते है

घरवाले रोते बिफड़ते है

कंठ कंठ भर्राए हुए

होठ होठ थर्राए हुए

यौवन के दहलीज पर

वो बैठी है शरमाए हुए

जब अरमानो की आहूति

हवनकुंड में जलती है

जब सपनो की दुनिया

अंधकार में खोती है

तब बालिका वधू होती है ।।

कुछ होती है विवशता भी

और धन दहेज की चिंता भी

कुछ चिंता होती सम्मान की

बेटी की भविष्य के प्राण की

ना चाहते हुए भी

माँ बाप की बेटी से दूरी होती है

तब बालिका वधू होती है ।।

कौन सोचे नन्ही बिटिया की

कौन सोचे उसकी सुख दुख की

यहाँ आज भी बेटी बोझ है

बेटी माँ की जली हुई कोख है

और माँ की ममता रोती है

तब बालिका वधू होती है।।

Sayar/poet :_  ANISH RAJ.
KILLER ANISH .

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