शनिवार, 22 जून 2024

यूं बेरूखी से तेरा मुकर जाना

यूं बेरुखी से तेरा मुकर जाना मुझे गंवारा ना हुआ
तू कहता था कि है मेरा पर तू हमारा न हुआ 

क्या करोगे ऐसे स्वार्थ भरे जीवन का सनम 
मुझसे वफा कर न सके किसी और से वफा न निभाओ

जिस्मों जा को तलब है तुम्हारी मरने के हद तक 
यूं तलब का दरिया सनम दूरियों से न सुखाओ

कई सैलाब उठते है जिगर में तूफान की तरह 
बवंडर इश्क का है "अनीष" इसे हवा मत बनाओ

जो मेरे न हो सके किसी और के क्या होगे तुम 
या खुदा ! हमें उनके लिए और न तड़पाओ ।।

चांद की कश्ती में

चांद की कश्ती में इक जहां है हमारा 
जहां न तुम हो हमारे , न कोई है हमारा 

वो चांद भी मेरे दु:ख से सिमट सा गया है 
यहां कौन है हमारा और कौन है तुम्हारा 

मैं चाहता हूं कि तुम्हें उस दु:ख से निकाल लूं 
और ले चलूं वहां जहां तुम रहो हमारी और मैं रहूं तुम्हारा ।।

Anish ; 26/6/2024. 9:00 p.m