रविवार, 28 जुलाई 2024

कब तक मैं ही कोशिशें करूं तुम्हें मनाने की

कब तक मैं ही कोशिशें करूं तुम्हें मनाने की 
कभी तो तुम भी मान जाया करो 

बड़ी हसरत है दिल को कि तुम्हें छू कर देखूं 
कभी तो अपने करीब बुलाया करो 

इस जिंदगी का क्या भरोसा कब है कब नहीं
कभी तो सीने से लगाया करो

बड़ी बेचैनी से बीतती है सारी रात 
कभी तो ख्वाबों में आ जाया करो 

सितम उतना ही करो जितना हमसे सहा जाए
यूं हमें बेचैन करके न जाया करो ।।

अनीष.   28/7/24


यूं पर्दे में ना आया करो

मुझे नहीं पसंद हमारे बीच में दीवारें 
यूं पर्दे में ना आया करो

 बहुत नाजुक है दिल मेरा सनम
 इसे बेवजह न तड़पाया करो

हुई मुद्दत हमें चांद को देखें
चांदनी रात सी कभी छलक जाया करो

 कि अब मर जाएंगे हम जुदा हुए तो 
कभी तो जीने की वजह बन जाया करो।

अनीष .    27/7/24

शुक्रवार, 19 जुलाई 2024

मैं तुझे अब भूलाना चाहता हूं ।

उस दिल उस दर्द से निकल जाना चाहता हूं
मैं तुझे अब भूलाना चाहता हूं ।
बरसों जो मुझे समझ नहीं पाई 
उसी से अब दूर जाना चाहता हूं ।
मैंने सोचा था मैं साथ रहूंगा तेरे उम्र भर
 पर मैं अब कहीं और जाना चाहता हूं ।
मेरी मजबूरी है सनम कि मैं कुछ कह नहीं सकता
 तुझे अपने दिल का हर हाल बताना चाहता हूं ।
तुझे भी मतलब है सिर्फ खुद से ही , मुझसे क्या मतलब
 अब वही मतलब छुपाना चाहता हूं ।
बहुत थक गया हूं मैं तुझे मनाते मनाते 
अब सुकून की नींद पाना चाहता हूं ।
इस जिस्मो जां को तलब थी तेरी
 अब वही तलब मिटाना चाहता हूं ।
रूह से जिगर तक झुलस गया है मेरा 
अब तन्हाई में वो जख्म मिटाना चाहता हूं ।
बड़ी शिद्दत से चाहा था तुझे
 पर अब मैं तुझे दिखाना चाहता हूं 
तू मुझे चाह ना सकी 
अब कभी भी मैं तेरे पास लौट कर नहीं आना चाहता हूं।।
अनीष
19/7/24
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मंगलवार, 16 जुलाई 2024

Hindi kavita || तेरे पलकों से गिरते आसुओ को थाम के देखूँ ||



तेरे पलकों से गिरते आसुओ को थाम के देखूँ 

तेरे पलकों से गिरते आसुओ को थाम के देखूँ 
अगर ये शाम है तो मैँ तुझे हर शाम को देखूँ 


न देखूँ तुझको देखने के बाद कोई भी मंजर 
जो देखूँ  खुद को सरेआम तो  नीलाम मैं देखूँ 


खरीद ले तू मुझे ऐ मेरे हमदर्द , हमराही 
मै जिंदगी की शाम देखूँ  तुझे थाम के देखूँ   



"अनीष"  यूँ ही नहीं जिंदगी अपनी हुई जन्नत 
जो देखता हूँ तुझे खुद को लगे राम मैं देखूँ   ।। 


शायर :- अनीष राज  . 


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रविवार, 14 जुलाई 2024

तुम सोचती होगी कि मैं तुम्हें कॉल क्यों नहीं करता ?

तुम सोचती होगी कि मैं तुम्हें कॉल क्यों नहीं करता 
सच कहूं तो मुझे तुम्हारे लिए तड़पना अच्छा लगता है
 और मैं चाहता हूं कि तुम उस तड़प को महसूस करो जो प्यार में होता है 
मन तो बहुत करता है तुमसे बातें करता रहूं 
तुम्हें सीने से लगा कर रखूं 
तुमपर हर पल अपना प्यार लुटाऊ
 पर मैं नहीं जानता कि तुम्हारे दिल में क्या है
आंखें तुम्हारी कुछ कहती है 
कभी इकरार करती है
 कभी इनकार करती है
 ऐसा लगता है जैसे तू मुझे प्यार करती है
 पर कभी-कभी तुम इतनी बेरुखी से पेश आती हो 
मुझसे नज़रे भी नहीं मिलती हो
 तब लगता है जैसे दिल में कुछ टूट सा गया है 
तड़प कर रह जाता हूं तुम्हारी इन हरकतो से
 पर तुमसे पूछूं भी तो कैसे 
डर है कहीं खो ना दूं , वो भी रिश्ता जो तुमसे है जुड़ा है 
ऐ मेरे महबूब मेरे दिल में है बहुत अरमां 
 सोचता हूं तुम्हारी नाज़ुक गुलाब की पंखुड़ियां सी होठों को 
छू लूं अपने होठों से 
और उस स्पर्श से तुम विमुग्ध हो जाओ
 और खो जाओ मुझमें
 और उस असीम प्यार को महसूस करो
 जो हर पल तुम्हारे लिए मैं महसूस करता हूं
 ऐ मेरे  सनम मैं तुमसे बड़ी मुश्किल से दूर रहता हूं
 कभी-कभी जब हद से ज्यादा तड़प उठता हूं
 तो दिल करता है तुम्हारे सीने  में मुंह को छुपा लूं 
और घंटो लिपटा रहूं तुमसे 
उस लता की तरह जो लिपट जाती है किसी डाल से 
तुम्हारी उन आंखों में मुझे मेरे लिए प्यार दिखता है 
वो तड़प दिखती है , जिसे मैं चाह कर भी बयान नहीं कर सकता
 गुजरता हूं हर शाम  रात तुम्हारी गलियों से 
बस एक झलक तुम्हारी देखने के लिए कई मिलो का सफर तय करता हूं 
तुम तो आती नहीं नजर 
तुम्हारी खिड़की दरवाजों को देखकर सुकून मिल जाता है - कि तुम ठीक हो 
वो रौशनी  जो तुम्हारे कमरे के झरोखों से आती है
 जब मेरे बदन को छूती है, तो लगता है जैसे तुमने मुझे छू लिया है 
और कभी जो तुम दिख जाती हो मुझे वहां
 बड़ी मासूम लगती हो तुम उन घर के कपड़ों में 
  एक अल्हड़ बच्ची सी खिलखिलाती 
 और यहां जहां  हम काम करते हैं
 कितनी अलग लगती हो तुम 
उन ऑफिस के छोटे से कैबिनेट में 
तुम्हारी परफ्यूम की महक जब मुझमें समाती है 
रोम रोम सिहर जाता है मेरा
 एक अजीब सा एहसास होता है 
जिसे शब्दों में बयां नहीं कर सकता मैं 
और जब मैं तुम्हारे चेहरे को बेशर्मी  से देखता हूं
 तो दिल करता है सच में बेशर्म बन जाऊं , सबके सामने वही 
और तुम्हें  कस के अपने सीने से चिपका  लूं 
और उन गोरे-गोरे गालों को जी भर के चूमूं 
सच कहूं तो तुमसे लड़ना चाहता हूं , झगड़ना चाहता हूं, 
 तुम  पर अपना हक जताना चाहता हूं 
और तुम्हारे साथ दुनिया के सामने बेशर्म बन जाना चाहता हूं
  चाहता हूं कि तुम्हारे मांग में सूरज की लालिमा  भर दूं
और अमावस की काली रातों सी तुम्हारी आंखों में खो जाऊं कहीं 
और उस चांदनी रात में दो मंजिलें बालकनी में 
 तुम्हारे पीछे तुमसे लिपट कर ,तुम्हारी दोनों हाथों  को थामे
 तुम्हारी गालों से अपने गालों को सटा कर
 घंटो उस चांद को अपने चांद के साथ निहारूं 
उन सुंदर दृश्यों को देखूं जो पेड़ों से  ढ़की पहाड़ियों की है
 उन नदियों की है , उन बस्तियों की है 
उस कल्पना से परे दुनिया में  मैं तुम्हारे साथ जाना चाहता हूं
 तुम्हें अपने सीने से लगाकर सो जाना चाहता हूं
 मेरी जान तुझसे बहुत प्यार है मुझे 
और तुझे मैं पाना चाहता हूं ।।

अनीष .  
July 2024

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