सोचता हूँ तुझसे इज़हार कर दूं मैं
तेरे दिल को भी बेकरार कर दूं मैं
पर डरता हूं तेरे इनकार करने से
तुझे खो कर तुझसे बेइंतहा प्यार करने से
टूट कर बिखर जाउंगा मैं चंद लम्हातो में
दिल भी दुखेगा मेरा फिर छोटी छोटी बातों पे
तेरी बेरूखी भी समझ आती है मुझे
तेरे दिल की दबी चाहत भी तड़पाती है मुझे
तुझे भी मुझसे प्यार तो है
तेरा भी दिल बेकरार तो है
पर मैं जानता हूं तू इसे नहीं स्वीकार करेगी
और तुझे समझा पाना भी मेरे बस की बात नहीं
जोर जबरदस्ती करूं ऐसे मेरे हालात नहीं
ये अजीब कसमकस का दौर है
तेरे लिए भी मेरे लिये भी
पर सोचना तू कभी खुद के बारे में भी
कि क्या तेरा निर्णय सही है मुझसे दूर रहने का
सिर्फ ये सोच कर कि समाज क्या कहेगा
और तेरे इस दुख का साथी कौन समाज है
कोई तेरा अपना नहीं है तेरे दुखो में
और वो तू जो एक अंजान बंधन में खुद को महसूस करती है
सब तेरे मन का बंधन है
तू उससे बाहर निकल कर देख
और सोच की पिछली गलतियों को कैसे सुधारा जाए
और अपनी आने वाली जिंदगी को कैसे संवारा जाए
बरसो बीत जाते है पत्थर दिल नहीं बनते
और आज जो तुमने ये मौका ठुकरा दिया
यकिन मानो एक दिन तुम्हें एहसास होगा
कि तुम गलत थी
और तब तुम्हारे पास न वक्त होगा न मैं
पर सच तो ये है कि मुझे तुमसे बेइंतहा इश्क है
जिसे मैं बयां कर तो दूं पर अल्फ़ाज़ कम पर जायेंगे
तुमसे बिछड़ कर हम जियेंगे तो
पर अंदर ही अंदर हम मर जाएंगे ।।
अनीष
31/8/24
7:45 pm